आप भी जानिये कौन था "मैकाले" और क्या है "कांग्रेस" से कनेक्सन .........!!
मित्रों आप आज जो ये "सेकुलर" नस्ल ,अंग्रेजो की गुलामी वाली मानसिकता ,इनके उत्सवो को जोर -सर से मनाने पीढिया ,और अपने संस्कृति का बिलकुल भी ध्यान ना रखने वाले ये जो लोग भी है ,ये समझते है की वो बहुत ही ज्ञानी ,विद्वान और आधुनिक लोग है !
आज आप इन्हें इनके सेकुलर विचार और ब्रितानी स्टाईल पर प्रश्न चिन्ह लगाओगे तो ये आग-बबोला हो उठेंगे और आप को अनपढ़ और गवार और Show-Off करने वाला भी कह सकते है !!
परन्तु सच्चाई यह है की ये लोग इक बहुत ही खतरनाक रचे हुए साजिश में बुरी तरह फंसाए गए है ,
और ये साजिस रची थी सन 1835 में मैकाले ने !!
मैकाले हिन्दुस्तानियो को मानसिक स्तर से भी गुलाम बनाना चाहता था और आज उसकी रची हुई साजिस पुरे हिन्दुस्तान के कोने-कोने तक पहुच चुकी है ,और आज ये कांग्रेस उसी षड़यंत्र को आगे बढा रही है !!
मैकाले के शब्द थे .....
‘***अगर आप एक ऐसी युवा पीढ़ी उत्पन्न करना चाहते हैं, जो न केवल अपनी अस्मिता और विरासत से अनभिज्ञ हो, बल्कि उसके प्रति गहरी हिकारत की भावना रख सके, तब उसे संस्कृत की शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। क्योंकि वह एक ऐसी भाषा है, जो एक भारतीय को अपनी सशक्त परंपरा और विशिष्ट अस्मिता के प्रति सचेत करती है। उसे अंग्रेजी की शिक्षा दी जानी चाहिए, जिसके माध्यम से वह पश्चिमी मूल्यों में दीक्षित हो सके****।’
मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी वो, उसमे वो लिखता है कि.....
"**इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी** "!!
अगर हमारे अंग्रेजीदां बौद्धिक आज इन बातों को सुनना भी नहीं चाहते, तो वे मैकॉले को बार-बार सही साबित कर रहे हैं। वे बौद्धिक और उनकी नकल करने वाले हिंदी रेडिकल भी एक कृत्रिम, संकीर्ण दुनिया में रहते हैं।
इसीलिए वे नहीं देख पाते कि भारत में पश्चिमी मानसिकता का दबदबा और हिंदू-विरोधी बौद्धिकता जितनी सशक्त आज है, उतनी ब्रिटिश राज में कभी न रही। हमारे उच्च-वर्ग के बौद्धिक प्रतिनिधि अपने ही देश के धर्म, शास्त्र, साहित्य और परंपराओं के प्रति दुराग्रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘तीन सौ रामायण’ से संबंधित विवाद इसका नवीनतम प्रमाण है!!
ध्यान दें, मैकॉले ने हमें अंग्रेजी पढ़ाने पर उतना बल नहीं दिया था जितना संस्कृत और अपनी भाषाओं से अलग करने पर। वह भाषा की भूमिका समझता था। यह मर्म भी कि भारतीयता की आत्मा संस्कृत में बसती है ... इसलिए जो भारतीय अपनी भाषा से कटा, उसे आत्म-हीन बनाना बहुत सरल हो जाएगा। यहां तक कि समय के साथ ऐसे भारतीयों में अनेक को भारत-विरोधी बनाना भी संभव हो जाएगा।
मैकॉले का अभियान सौ वर्ष के अंदर ही आज इंडिया के कोने-कोने तक पहुंच चुका है।
महात्मा गांधी तो अपने जीवन में ही बुरी तरह हार चुके थे, जब उन्होंने दूसरे कामों के अलावा ‘कांग्रेस में एकमात्र अंग्रेज’ को इसी आधार पर अपना उत्तराधिकारी बनाया! उसके बाद जो हुआ, होता रहा, वह हम देखते ही रहे हैं। अपनी भाषा-संस्कृति से प्रेम रखने वाले भारतवासियों को भ्रम-मुक्त होकर और विचारधारा के नशे से भी मुक्त होकर वैकल्पिक उपायों पर सोचना चाहिए !!
इस बात को हमारे अनेक मनीषी और नेता भी समझते थे। इसीलिए उनके लिए लक्ष्य अपनी भाषा में काम करने का था, अंग्रेजी बहिष्कार का नहीं। श्रीअरविंद, रवींद्रनाथ ठाकुर, सुभाषचंद्र बोस, गांधी, सरदार पटेल, राजाजी, मुंशी, महादेवी, शंकर कुरुप आदि महापुरुषों ने बल दिया था कि हर भारतीय की पहली और सिद्ध भाषा उसकी मातृभाषा हो। तभी वह सच्चे अर्थ में शिक्षित होगा। उनके लिए हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाए रखने का आग्रह उसी का दूसरा पहलू था, कोई विलग बात नहीं।
आज कांग्रेस भी पूरी तरह से मैकाले के सिद्धांत पर चल रही है, हमे हमारे संस्कृति से और दूर ले जा रही है ,आरक्षण के नाम पर हम लोगो को बाँट रही है ,सूर्य नमस्कार पर आपत्ति ,गीता पढने पर बवाल ,और हिन्दुओ के दल को आतंवादी कह रही है
ध्यान रहे नेहरु भी उसी मैकाले के साजिस के तहत राज चलाया था ,आज़ादी के अगले दिन लाल किले से उसने अंग्रेजी में भाषण दिया था जबकि देश की 75-80% जनता अशिक्षित थी ,
हमे कांग्रेस को जड से मिटाना होगानहीं तो हमारी बची-खुची सभ्यता भी खत्म हो जायेगी और आने वाली पीढ़ी पूरी तरह से मानसिक गुलाम हो जायेगी !!
और वो दिन भी दूर नहीं जब सोनिया मायिनो गांधी इस हिन्दुस्तान को वेटिकन सिटी के पोप को बेंच देगी !!तो अंत में प्रश्न यही उठता है की
"They Did What They Wanted" .....Can We Undo It ???????????
मित्रों आप आज जो ये "सेकुलर" नस्ल ,अंग्रेजो की गुलामी वाली मानसिकता ,इनके उत्सवो को जोर -सर से मनाने पीढिया ,और अपने संस्कृति का बिलकुल भी ध्यान ना रखने वाले ये जो लोग भी है ,ये समझते है की वो बहुत ही ज्ञानी ,विद्वान और आधुनिक लोग है !
आज आप इन्हें इनके सेकुलर विचार और ब्रितानी स्टाईल पर प्रश्न चिन्ह लगाओगे तो ये आग-बबोला हो उठेंगे और आप को अनपढ़ और गवार और Show-Off करने वाला भी कह सकते है !!
परन्तु सच्चाई यह है की ये लोग इक बहुत ही खतरनाक रचे हुए साजिश में बुरी तरह फंसाए गए है ,
और ये साजिस रची थी सन 1835 में मैकाले ने !!
मैकाले हिन्दुस्तानियो को मानसिक स्तर से भी गुलाम बनाना चाहता था और आज उसकी रची हुई साजिस पुरे हिन्दुस्तान के कोने-कोने तक पहुच चुकी है ,और आज ये कांग्रेस उसी षड़यंत्र को आगे बढा रही है !!
मैकाले के शब्द थे .....
‘***अगर आप एक ऐसी युवा पीढ़ी उत्पन्न करना चाहते हैं, जो न केवल अपनी अस्मिता और विरासत से अनभिज्ञ हो, बल्कि उसके प्रति गहरी हिकारत की भावना रख सके, तब उसे संस्कृत की शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए। क्योंकि वह एक ऐसी भाषा है, जो एक भारतीय को अपनी सशक्त परंपरा और विशिष्ट अस्मिता के प्रति सचेत करती है। उसे अंग्रेजी की शिक्षा दी जानी चाहिए, जिसके माध्यम से वह पश्चिमी मूल्यों में दीक्षित हो सके****।’
मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी वो, उसमे वो लिखता है कि.....
"**इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी** "!!
अगर हमारे अंग्रेजीदां बौद्धिक आज इन बातों को सुनना भी नहीं चाहते, तो वे मैकॉले को बार-बार सही साबित कर रहे हैं। वे बौद्धिक और उनकी नकल करने वाले हिंदी रेडिकल भी एक कृत्रिम, संकीर्ण दुनिया में रहते हैं।
इसीलिए वे नहीं देख पाते कि भारत में पश्चिमी मानसिकता का दबदबा और हिंदू-विरोधी बौद्धिकता जितनी सशक्त आज है, उतनी ब्रिटिश राज में कभी न रही। हमारे उच्च-वर्ग के बौद्धिक प्रतिनिधि अपने ही देश के धर्म, शास्त्र, साहित्य और परंपराओं के प्रति दुराग्रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘तीन सौ रामायण’ से संबंधित विवाद इसका नवीनतम प्रमाण है!!
ध्यान दें, मैकॉले ने हमें अंग्रेजी पढ़ाने पर उतना बल नहीं दिया था जितना संस्कृत और अपनी भाषाओं से अलग करने पर। वह भाषा की भूमिका समझता था। यह मर्म भी कि भारतीयता की आत्मा संस्कृत में बसती है ... इसलिए जो भारतीय अपनी भाषा से कटा, उसे आत्म-हीन बनाना बहुत सरल हो जाएगा। यहां तक कि समय के साथ ऐसे भारतीयों में अनेक को भारत-विरोधी बनाना भी संभव हो जाएगा।
मैकॉले का अभियान सौ वर्ष के अंदर ही आज इंडिया के कोने-कोने तक पहुंच चुका है।
महात्मा गांधी तो अपने जीवन में ही बुरी तरह हार चुके थे, जब उन्होंने दूसरे कामों के अलावा ‘कांग्रेस में एकमात्र अंग्रेज’ को इसी आधार पर अपना उत्तराधिकारी बनाया! उसके बाद जो हुआ, होता रहा, वह हम देखते ही रहे हैं। अपनी भाषा-संस्कृति से प्रेम रखने वाले भारतवासियों को भ्रम-मुक्त होकर और विचारधारा के नशे से भी मुक्त होकर वैकल्पिक उपायों पर सोचना चाहिए !!
इस बात को हमारे अनेक मनीषी और नेता भी समझते थे। इसीलिए उनके लिए लक्ष्य अपनी भाषा में काम करने का था, अंग्रेजी बहिष्कार का नहीं। श्रीअरविंद, रवींद्रनाथ ठाकुर, सुभाषचंद्र बोस, गांधी, सरदार पटेल, राजाजी, मुंशी, महादेवी, शंकर कुरुप आदि महापुरुषों ने बल दिया था कि हर भारतीय की पहली और सिद्ध भाषा उसकी मातृभाषा हो। तभी वह सच्चे अर्थ में शिक्षित होगा। उनके लिए हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाए रखने का आग्रह उसी का दूसरा पहलू था, कोई विलग बात नहीं।
आज कांग्रेस भी पूरी तरह से मैकाले के सिद्धांत पर चल रही है, हमे हमारे संस्कृति से और दूर ले जा रही है ,आरक्षण के नाम पर हम लोगो को बाँट रही है ,सूर्य नमस्कार पर आपत्ति ,गीता पढने पर बवाल ,और हिन्दुओ के दल को आतंवादी कह रही है
ध्यान रहे नेहरु भी उसी मैकाले के साजिस के तहत राज चलाया था ,आज़ादी के अगले दिन लाल किले से उसने अंग्रेजी में भाषण दिया था जबकि देश की 75-80% जनता अशिक्षित थी ,
हमे कांग्रेस को जड से मिटाना होगानहीं तो हमारी बची-खुची सभ्यता भी खत्म हो जायेगी और आने वाली पीढ़ी पूरी तरह से मानसिक गुलाम हो जायेगी !!
और वो दिन भी दूर नहीं जब सोनिया मायिनो गांधी इस हिन्दुस्तान को वेटिकन सिटी के पोप को बेंच देगी !!तो अंत में प्रश्न यही उठता है की
"They Did What They Wanted" .....Can We Undo It ???????????