Sunday 27 November 2011

उत्तर प्रदेश .............इक "जटिल" राजनीतिक भूमि !!


नमस्कार

मित्रो उत्तर प्रेदेश की राजनीति के बारे मे मै जो कुछ भी लिखू  उसमे कुछ भी नया नहीं होगा ... लगभग हर प्रकार की बातें आप सब जानते ही होंगे ! पर इसके साथ मैंने "जटिल" शब्द का भी प्रयोग किया है ,जटिल शब्द का प्रयोग मैंने इसलिए किया की ये भूमि इतनी अधिक राजनीतिक है की इसके राजनीतिक स्वरूप का वर्णन "श्रीमद भागवत " मे भी इसका उल्लेख है ! मै आज आप लोगो को "श्रवण "कुमार से संबन्धित इक लघु कथा बताता हूँ जिससे यह साबित हो जाता है की ये भूमि कितनी "जटिल राजनीति" वाली है !

जैसा की हम सब जानते है की पूरे भारत वर्ष के राजनीति का केंद्र सिर्फ उत्तर प्रेदेश ही है ... इक अकेला प्रेदेश जो 80 लोकसभा सीटे देकर इस विशाल भारत के भाग्य विधाता का निर्वाचन करता है ! कहते है की "दिल्ली की गद्दी का रश्ता सिर्फ लखनऊ से होकर जाता है "" ! केंद्र मे चाहे जिसकी भी सरकार हो अगर उसे लखनऊ का सपपोर्ट ना हो तो वह बिलकुल भी नहीं चल सकती ! आज केंद्र मे काँग्रेस की सरकार अवस्य है और लखनऊ मे बसपा की लेकिन  सच्चाई यही है की काँग्रेस सरकार को बसपा का समर्थन प्राप्त  है और काँग्रेस जानती है की अगर उसकी सरकार अल्पमत मे आएगी तो बसपा उसका खुला समर्थन करके बचा लेगी और नहीं तो सपा उसका सहयोग अवस्य करेगी !

ये इक ऐसा प्रेदेश है जिसका विधान सभा का परिणाम आने वाले लोकसभा के परिणाम की ब्याखा कर देता है...
यही के "राम मंदिर " के मुद्दे को लेकर भाजपा दिल्ली तक जा पहुची और इसी राम मंदिर ना बना पाने के कारण भाजपा गर्त मे भी चली गई !

यहाँ हर पार्टी अपने अपना सर्वश्रेस्ट दांव चलती है ,यहाँ की हवा कब किस रुख ले ले किसी को नहीं पता ...इस भूमि के कण कण मे राजनीति समाई  है जिसका वर्णन "श्रीमद भागवत ' के इक लघु कथा मे है .....
क्षमा करिएगा मै पूरी तरह आश्वस्त नहीं हूँ की ये कथा "श्रीमद भागवत की ही है " पर जहां तक मुझे याद है ये प्रवचन मैंने "भगवत पुराण की ही सुनी है

कहानी ये है की "जब श्रवण कुमार अपने माता-पिता को अपने कंधे पर उठा कर तीर्थ यात्रा के लिए निकले थे तो चलते चलते इक स्थान पर पहुचे तो उनके मन मे ये विचार आया की वो ये सब क्यों कर रहे है... क्या लाभ होगा उनको ये सब करके ..... तीर्थ यात्रा वो भी अंधे माता-पिता को क्या आवस्यकता है कराने की ... इसप्रकार के विचार उनके मन मे गहराई से स्थान बनाने लगे ! उस स्थान से वो जितना भी आगे बढ़ रहे थे वो केवल अपने बारे मे, अपने स्वार्थ के बारे मे सोचते जाने लगे ..... जाते जाते वो इक स्थान पर रुक गए और अपने माता -पिता से कहा की अब वो उन्हे तीर्थ यात्रा पे नहीं ले जा सकते क्योकि इसमे उनको कोई लाभा नहीं मिलेगा !फिर उनके माता-पिता ने उनको समझाया की तीर्थ यात्रा के संकल्प को बीच मे नहीं छोडते अगर वो थक गए है तो 1-2 दिन विश्राम कर ले ॥बहुत समझाने के बाद श्रवण कुमार उनको लेकर फिर से यात्रा पर निकाल पड़े ॥लेकिन जैसे जैसे वो आगे बढ़ते जा रहे थे उनके मन मे  सिर्फ लाभ-हानी का विचार चल रहा था ...फिर वो अपने गृहस्थी और अपने जीवन ,यश-किर्ति और वैभव की ही विचार आ रहा था और अन्तः उनके मन मे ये विचार आने लगा की उन्होने उए यात्रा की बीड़ा उठाया ही क्यों ??

इन्ही व्यक्तिगत स्वार्थ और अवसाद से घिरे चलते जा रहे श्रवण कुमार इक स्थान पर पहुचे ही रुक ज्ञे और पूरी दृढ़ता के साथ और पूरे आवेश मे आकार अपने माता-पिता से बोले की उनको लेकर  अब वो इक कदम आगे नहीं बढ़ सकते और साथ मे ये भी कहा की वो उन्हे छोडकर जा रहे है ... माता-पिता के बहुत समझाने पर   भी वो नहीं माने तो उनके पिता ने ईश्वर का ध्यान लगाया .... ध्यान लगाने के उपरांत उन्होने श्रवण कुमार से कहा की वो उन्हे कुछ कोस और दूर लेकर चले फिर वो चाहे तो उन्हे छोड़ कर चले जाये ! श्रवण कुमार इस बात को मान गए  की वो उन्हे कुछ दूर और लेजाकर छोड़ देंगे !

उनके पिता द्वारा बताए गए दूरी को तय करने के पश्चात श्रवण कुमार का मन अचानक पूरी तरह परिवर्तित हो गया और वो पुनः अपने माता -पिता के भक्ति मे डूबते हुए उन्हे तीर्थयात्रा कराने की दृढ़ प्रतिज्ञ का विचार आया , वो अपने माता-पिता के चरणों मे गिर गए  और उनसे रोते हुए अपने किए हुए अपराध का क्षमा मांगने लगे ,फिर उनके माता-पिता ने तुरन उन्हे क्षमा कर दिया !

श्रवण कुमार ने जब इसका कारण जानना चाहत तो उनके पिता ने बताया की इसके जिम्मेदार वो नहीं बल्कि "ये भूमि है " !
उनके पिता ने कहा की ये इक बहुत ही राजनीतिक भूमि है ॥यहाँ किसी भी मनुष्य की सोच बादल जाती है और वो व्यक्तिगत लाभ-हानी ,स्वार्थी,कुटिल प्रवृति का हो जाता है !

"मित्रो जहां से श्रवण कुमार की बुद्धि भ्रमित होनी शुरू  हुई थी आज के दौर मे वही भूमि उत्तर प्रदेश  की भूमि कहलाती है और जिस स्थान पर श्रवण कुमार ने अपने माता पिता को अकेले छोड़ कर जाने का निश्चय कर लिया था और उनके पिता ने कहा था की वो उन्हे उस स्थान से कुछ कोस और आगे ले जाकर छोड़ दे मित्रो आज के दौर वो स्थान पूरे भारत का राजनैतिक ध्रुवीकरण का केंद्र "लखनऊ" कहलाता है" !

कालांतर मे चल कर इसी भूमि के नायक श्री कृष्ण ने इसी भूमि से इक ऐसा राजनैतिक युद्ध की रचना किया जिसमे इक दो खानदान पूरी तरह से खत्म हो गए और ऐसा युद्ध जो न कभी हुआ और ना कभी हो पाएगा और इसी युद्ध के द्वारा नए प्रकार के राजनीतिक और कूटनीतिक तरीको का जन्म भी हुआ था और जिसका प्रयौग   आज उत्तरप्रदेश की भूमि पर पूरे-ज़ोर शोर से हो रह है !!

मित्रो जिस भूमि ने माता-पिता के अनन्य भक्त श्रवण कुमार के मन मष्तिस्क तक को परिवर्तित कर दिया उस उत्तरप्रदेश की भूमि पर आज इतनी गंदी राजनीति होने पर आश्चर्य की कोई आवश्यकता नहीं क्योकि वो समय तो त्रेतायुग था और आज तो कलुयुग है !! और इसी बात से ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है की ये भूमि कितनी बड़ी राजनीतिक है !!

4 comments:

  1. ठीक कहा आपने ... यह वही भूमि है जहाँ जेब मे भले दमड़ी न हो लेकिन सुबह होते ही युवा मुंह मे पान का बीड़ा(अब पान मसाला) दबा कर गमछा गले मे डाल, हांथ मे कलावा बांधे कस्बे की बाज़ार मे राजनीति करते और एक कप चाय पीने पिलाने की चाहत मे बैठे मिल जाते हैं। होशियारी और कुटिलता मे बहुत अंतर होता है।

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  2. अपना ब्लॉग ब्लॉग प्रहरी और http://www.hamarivani.com/ पर रजिस्टर कर दें जिससे अधिक से अधिक लोग पढ़ सकें

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  3. हा हा ठीक कहा आपने हुक्म और लखनऊ के विधान सभा के अलावा हमारे यहाँ दूसरी विधान सभा है उत्तर प्रदेश के सभी विधायलय.... जहां सारा दिन शिक्षक बैठ के राजनीति झाड़ते रहते है !

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  4. हमारी वाहिनी पर रजिस्टर कर दिया है पर उसमे आ रहा है की कोई कोड है जिसको की अपने ब्लॉग के क्लिप बोर्ड पे कापी करना है ये समझ नहीं आ रहा है !

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